Friday, February 9, 2018

romanchak rome

                                                     
                                                            रोमांच से भरपूर रोम


विद्यार्थी जीवन में जब स्कूल मेंभूगोल की कक्षा में  विश्व का ग्लोब देखते थे तो अचम्भा होता था की कैसे नक़्शे बनाने वाले सम्पूर्ण विश्व को एक स्फीयर में चित्रित कर देते है। फिर इतिहास में पढ़ते थे विभिन्न सभ्यताओं के बारे में जो की हजारों साल पहले विद्यमान थी। एशिया में हरप्पा एवं मोहनजोदड़ो की सभ्यता एवं  यूरोप में यूनानी सभ्यता। विभिन्न साम्राज्यों में रोमन साम्राज्य एवं इसकी विशालता के बारे में बहुत पढ़ाथा।  किसी भी विशालता का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल होता हे जब तक हम उसे देख नहीं लेते।
सौभाग्य से इस वर्ष अक्टूबर में रोम शहर जो की इटली में हे घूमने का अवसर मिला।हमने ब्रुसेल्स एयरपोर्ट से जो की बेल्जियम में हे रोम की फ्लाइट ली और डेढ़ घंटे में रोम
रोमन साम्राज्य की भव्यता  का अनुमान भी रोम देखने के बाद ही हुआ। आज से हजारों वर्ष पहले जो इम्मारते बनाई गयी उनकी स्थापत्य कला देख कर बहुत ही अचम्भा होता हे। is
इस शहर की स्थापना.  ईसा पूर्व ८०० वर्ष पुरानी बताई जाती हे। कहा जाता हे की पाश्चात्य सभ्यता का जनम यहीं
पर हुआ था।
वैसे तो रोम में अनगिनत दर्शनीय जगह हे। इन सभी को देखना तीन दिन में संभव नहीं था। फिर भी जिन जगह को देखा
देखते ही रह गयी।

फोरम जो कि किसी वक्त बहुत सारी गतिविधयों का केंद्र था आज कुछ मूर्तियों एवं उस समय के इमारतों के खंडहर के रूप में आज मौजूद हे।





यह बाज़ार ,सांस्कृतिक एवं राजनितिक गतिवधियों का स्थान था।हर

                                                        रोम शहर  का फोरम     

       
                                      

यह पर ही जुलुस निकलना,खेल कूद प्रतियोगिता एवं न्यायिक प्रक्रिया होती थी। यह विश्व भर में सबसे अधिक
गतिविधि वाला केंद्र था।
रोम शहर कला एवं स्थापत्य का भण्डार सा हे. .छार सड़क या गली बहुत ही बड़े चौक में मिलती हे और वहां बड़े ऊंचे खम्भे नजर आते हे जिनके ऊपर नक्काशी  द्वारा विभिन्न भाषाओँ में कुछ लिखा हुआ होगा या फिर आकृतियों द्वारा विचार प्रकट किये हुए हे।


                                             
     फोरम में खड़ा स्तम्भ  (नक्काशी वाला खम्भा )
                                                       




                                                                










                                                        स्तम्भ पर की हुयी नक्काशी

 इन स्तम्भ की ऊंचाई को देख कर समझ में ही नै आता की कलाकार ने कैसे इतनी ऊंचाई पर अपनी कला बिखेरी होगी ?
वैटिकन म्यूजियम जो की वैटिकन सिटी के अंदर हे विश्व के उल्लेखनीय म्यूजियम में से एक हे और यहाँ आने वाले     पर्यटकों की संख्या भी अनगिनत हे।
यहाँ पर ७०,००० से भी अधिक कलाकृतियों का संग्रह हे जिसमे से २०,००० के करीब पर्यटकों के लिए रखी  गयी हे।
इनमे पोप द्वारा एकत्रित किये गए भित्ति चित्र एवं उच्च कोटि की स्थापत्य कला की मूर्तियां हे। माईकल ऐंजेलो जो की   चित्रकला एवं स्थापत्यकला दोनों में निपुण था के द्वारा बनाये गए कलाकृति का संग्रह हे.
ट्रेवी फाउंटेन जो की १८वी शताब्दी में  रोम के ट्रेवी तहसील में बनवाया गया था.पत्थऱ से तराशा गए यह फवारा देखते हे तो लगता हे की से निहारते ही रहे। रात्रि के समय तो इसमें और भी निखार आ जाता हे। यहाँ पर बहुत हॉलीवूड की फिल्मो की शूटिंग भी हो चुकी हे. मान्यता हे की यदि इसमें एक सिक्का फेका जाने पर यहाँ दुबारा आने का संयोग बनता हे. इस वजह से हर पर्यटक यहाँ सिक्का फेकते रहते हे और प्रशासन इन सिक्को को यहाँ से निकालते  हे।
           


                                                   
          

पूरे विश्व में प्रसिद्ध पिज़्ज़ा एवम पास्ता इटली की ही देन है। और इसी कारण रोम के हर गली कूचे में पिज़्ज़ा एवम पास्ता की रेस्त्रां   मिल जायेंगे। यहां पर शाकाहारी  पर्यटकों को अधिक  दिक्कत नहीं होती हे।
हर सड़क कुछ दूरी के बाद एक विशाल चौक में मिल जाती हे। इस तरह पूरे शहर में अनगिनत चौक हे
चौक के बीच में  या तो विशाल स्तम्भ या सूंदर कलाकृतियों से सुसज्जित फव्वारा है जो की जगह की खूबसूरती को निखारता है।
अनगिनत म्यूजियम भी हे यहाँ पर लेकिंन सभी को देखना कम समय में सम्भव नहीं हे।
यहाँ पर एक स्थान है जिसे स्पेनिश स्टेप्स कहते है। हर समय पर्याटकों की भीड़ लगी रहती है। बहुत ही सुन्दर
संरचना है।



Wednesday, September 20, 2017

Chaumonix alps parvat ke beech me

इंसान का मस्तिष्क जिज्ञासा से परिपूर्ण होता हे। इसी की पूर्ती के लिए जहाँ तक होता हे वह अपनी हैसियत के अनुसार दर्शनाय स्थानों का भ्रमण करता हे। मुझे भी इस बार शामोनी जाने का अवसर मिला जो कीआल्प्स पर्वत श्रेणी से घिरा हुआ हे। प्राथमिक कक्षाओं में भूगोल में पढ़ा था की आल्प्स पर्वत श्रेणी यूरोप में हे जहाँ के आसपास का इलाका बहुत ही सूंदर हे विशेषकर गर्मी के मौसम में इसके सौंदर्य में निखार आ जाता हे। जब यहाँ जाने का अवसर मिला तो ज़ाहिर हेकि मन में उत्सुकता जगी। हमने ब्रूसेल एयरपोर्ट से जिनेवा की फ्लाइट ली। जिनेवा स्विट्ज़रलैंड में हे ब्रूसेल बेल्जियम में हे। और शामोनी फ्रान्स में हे.    वैसे  जगह तीन देशों यानि की फ्रांस,इटली एवं स्विट्ज़रलैंड के जंक्शन पर स्थित हे।
जिनेवा एयरपोर्ट से कार से हम सवा घंटे का सफर कर के शामोनी पहुंचे यह एक घंटे का सफर बहुत ही सूंदर वादियों का था. सड़क के एक और ाबरफ से ढके हुए आल्प्स के पहाड़ एवं दूसरी और सूंदर रहवासी इलाका.
अप्रेल का महीना था। गर्मी के मौसम की शुरुआत थी। अतः बर्फ और हरियाली दोनों विद्यमान थे. छोटे छोटे टाउनशिप
एकदम प्रकृति के करीब करीने से सजे हुए. .यह तय कर पाना मुश्किल था कि इन दृश्यों को केमेरे में कैद करूँ या मस्तिष्क की हार्ड डिस्क में। इस सफर को तय करके जब हम शमोनी पहुंचे तो अपने आप को चरों और से आल्प्स
श्रेणी से घिरा पाया ३६० डिग्री से घूम कर देखा तो भी आल्प्स ही नज़र आये.
हमने एक अपार्टमेंट बुक कर लिया था। इसमें सभी सुविधा थी. अपार्टमेंट की बालकनी से
                                                                               


                                                           अपार्टमेंट की बालकनी से दृश्य

से जो दृश्य नज़र आया वह इस चित्र में हे। पर्वत पर चरों तरफ केबल कार का आवागमन एवं बेलून उड़ाते हुए।
सम्पूर्ण इलाका सैलानियों से आबाद। लगा की शायद गर्मी के मौसम में सैलानी अधिक हे।
लेकिन यह जान कर आश्चर्य हुआ की यहां पर ठण्ड के मौसम में भी टूरिस्ट आते रहते हे। सर्दी में बर्फ पर स्कीइंग करने वालों की तादाद अधिक होती हे। यहाँ के निवासियों की आजीविका सैलानियों के सहारे चलाती हे.
रेस्टॉरेंट्स ,दुकाने ,और बर्फ में होने वाले स्पोर्ट्स के उपकरणों की बिक्री एवं मरम्मत आदि से।
पर्वतारोहण,और स्कीइंग करने वाले मुख्यतया इस स्थान को पसंद करते हे.
अनगिनत होटल्स एवं अपार्टमेंट्स बने हुए हे यात्रियों के ठहरने के लिए। यहाँ पर जी ग्लेशियर हे उसे मोंट दे ब्लैंक के नाम से जाना जाता हे.यह यूरोप की सबसे ऊंची पहाड़ी पर हे करीब ४५००फ़ीट से अधिक.शामोनी से ग्लेशियर तक पहुँचाने के लिए एक ट्रैन से जाना पड़ता हे। शमोनी विलेज से करीब दो किलोमीटर की ऊंचाई पर हे यह। एक लाल रंग की बहुत ही सूंदर ट्रैन के द्वारा हमने यह सफर तय किया। दो किलोमीटर की यात्रा २५ मिनट में तय हुयी। वहां पहुँचाने पर  हम दुनिया से सातवे आसमान पर हे। ट्रैन स्टेशन से ग्लेशियर तक पहुँचने के लिए केबलकार के द्वारा   जाना पड़ता हे।


बादल बर्फ से अठखेलियां करते हुऐ 


Friday, September 15, 2017

Migratory birds in Rajasthan

  1.                                                        पक्षी पलायन

प्रत्येक प्राणी को ईश्वर ने स्वयं को सुरक्षित रखने की क्षमता प्रदान की है। इसी कारण से यह सृष्टि चल रही हे। जीव मात्र कहीं भी खतरे की आशंका होते ही वहां से पलायन का प्रयास करते है। यह खतरा मौसम,या शत्रु का होता हे. इस पलायन की दौड़ में सबसे तेज बाजी मर लेते हे पक्षी। प्रकृति ने उन्हें पंख जो प्रदान किये हे। सम्पूर्ण विश्व में मौसम बदलता रहता हे।प्रतिकूल मौसम की मार से बचने के लिए मानव ने अपनी क्षमता के हिसाब से सुविधाओं की व्यवस्था की हे। ताकि उन्हें पलायन नहीं करना पड़े। लेकिन यह पक्षी सिर्फ अपने पंखों के सहारे सब तरह की मुसीबतों का सामना करते हे इसका इतना बढ़िया उदाहरण हम भारत के कुछ विशिष्ट स्थानों पर सर्दी के मौसम में दूर दराज़ से आये हुए पक्षियों को देख कर लगाया जा सकता हे। गुजरात के कच्छ जिले मेंभी ये पक्षी ठण्ड की मौसम में आते हे। फ्लेमिंगो कहलाने वाले ये पक्षी वहां कुछ महीने ठहराते हे और अपने अंडे दे कर उनके उड़ने तक रुकते हे अपने साथ अपने बच्चो को लेकर अपने देश चले जाते हे.इनके पंखों का रंग लाल होता हे इस वजह से इन्हे अग्नि पंख के नाम ;से भी जाना जाता हे। ;इसी तरहराजस्थान के उत्तर पश्चिमी इलाके में एक जगह हे खीचन। यह जोधपुर शहर से ६० किलोमीटर की दूरी पर हे। यहाँ पर प्रति वर्ष सितंबमाह से इन अतिथियों का आना आरम्भ हो जाता हे. यह पक्षी सुदूर साइबेरिया से आते हे।यह साइबेरियन क्रेन्स की प्रजाति हे। ये पक्षी हलके सलेटी रंग के यानि जिसे हम ग्रे रंग कहते है  के होते हे। प्रति वर्ष ८००० से १०००० तक पन्छी यहाँ आते हे। वहां पर तापमान बहुत कम हो जाता हे। बर्फ़ ज़माने लगती हे। तब ये पक्षी वहां से पलायन करते हे। पृथ्वी के उस हिस्से जहाँ कम सर्दी होती हे उस तरफ उड़ना आरम्भ करते हे।इंसानो के लिए सरहदे
बनायीगयी हे। लेकिन इन पक्षियों के लिए किसी भी वीसा की जरूरत नहीं हे। जहाँ सुविधा उपलब्ध हुयीवही बसेरा बना लेते हे खीचन में जो पक्षी आते हे उन्हें स्थानीय भाषा में कुरजां के नाम से जाना जाता हे        






          
                                      कुर्जा   का झुण्ड खीचन गांव में दाना चुगते हुए प्रातः नौ बजे
                                   

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यहाँ के निवासीवर्षा ऋतू के समाप्त होतेही  ;इन पक्षियों के आने की प्रतीक्षा करने लगते हे। यहाँ के लोक गीतों में भी इनपंछियों का वर्णन मिलता हे। ये पक्षी एक विशेष प्रकार की घास जो यहाँ पर होती हे उसे कहते हे कुछ छोटे जीव जंतु भी इनका भोजन होता हे। ये पक्षी यहाँ पर सदियों में अतिथि की तरह आते रहे हे। वैसे भी मारवाड़ की संस्कृति  अतिथि      देवो भव का प्रतीक हे. इनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक समिति का गठन किया हुआ हे। यह समिति इन पक्षियोंको निर्धारित समय पर दाना खिलाने की व्यवस्था कराती हे हमने जब इस स्थान को देखा तो एक विचत्र तरह का सामंजस्य यहाँ के निवासियों  इन पक्षियों में पाया। हमें बताया गया की प्रातः ९ से ११ बजे तक इनको दाना चुगने केस्थान पर देख सकते हे। उसके बाद यहाँ से उड़ कर ये कसबे के बाहर बने सरोवर पर पानी पीने के लिए पहुँच जायेंगे।इनकीसमयकी पाबन्दी देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ। यहाँ हमारी मुलाकात श्री सेवाराम माली से हुई   .ये इन पक्षियों की देखभाल में विशेष रूचि रखते है। इन्होने एक समिति गठन कर के इनके दाना पानी एवं सुरक्षा की देख रेख करते है। 

                                     
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सरोवर  पर पानी पीते हुए दिन केग्यारहबजे