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Saturday, June 16, 2018

A trip to Orissa

हमरा देश तीन तरफ़  से समुद्र से घिरा हुआ हे। समुद्र के किनारे रहने वाले निवासियों के जीवन के अनुभव भिन्न तरह के होते हे. जो लोग समुद्र से दूर रहते हे उनकी कल्पना में समुद्र के बारे में तरह तरह के दृश्य उभरते>है।क्योंकि मेरा जन्म और बचपन मे थार के रेगिस्तान के शहर जोधपुर में हुआ जहां पर इंदिरा नहर के आने के पहले पानी की बहुत कमी थी अतः में सदा से ही बाग़ बगीचों ,झील,तालाबों में ही आनंद अनुभव कराती हूँ. उड़ीसा पहुँचते ही मन प्रसन्न हो गया। उपजाऊ भूमि,एवं जल के संसाधनों की बहुतायत से हर तरफ हरा भरा नजर .>हमारा पहला पड़ाव उड़ीसा में भुवनेश्वर था
यह उड़ीसा की राजधानी है। हवाई अड्डे पर उतरते ही लगा कि यह शहर बहुत ही आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण होगा। शहर साफ सुथरा शहर। निवासी मृदुभाषी एवं सरल स्वाभाव के हे.. भुवनेश्वर में हमने यहाँ के म्यूजियम को देखने का प्लान बनाया था। उसके बाद में धौली का रात्रि का ध्वनि एवं प्रकाश का शो. देखना था

                                                                                                          धौळी  का  स्मारक 

                                                             
 धौली यहाँ की दया नदी के पास बना हुआ बुद्ध धर्म का स्मारक है  दया नदी का ऐतिहासिक मह्त्व है । इसी नदी के पास सम्राट अशोक ने कलिंग का युद्ध लड़ा था परिणाम वश यह नदी रक्त रंजित हो गयी थी।  एवं उसके बाद सम्राटअशोक  ने बौद्ध धर्म अपना लिया था
यही युद्ध कलिंगा के युद्ध के नाम से जाना जाता हे। यह युद्ध बहुत ही भयंकर था।कहा जाता हे की इस युद्ध के कारन दया नदी  का पानी रक्त रंजीत हो गया था। रात्रि का शो बहुत ही आकर्षक था। ऐसा महसूस हुआ कि मौर्या वंश के काल में बैठे हुए सब देख रहे भुवनेश्वर के बाद हमने कोणार्क मंदिर देखने का निश्चित किया। लेकिन उसके पहले हमने भुवनेश्वर के पास ही कुछ मंदिरो के दर्शन किये। वैसे तो इस जगह के चारोऔर अनगिनत मंदिर हे। सभी अपने आप में भव्य एवं ऐतिहासिक;हे। सभी को देखना संभव नहीं था समयाभाव के कारण। अतः हम लिंगराज मंदिर एवं राजा रानी मंदिर के दर्शन किये। कोणार्क मंदिर सूर्यदेवता का मंदिर हे..य़ह भुवनेश्वर से सत्तर   किलोमीटर दूर हे .
                                                                        कोणार्क 
               

                                                                 कोनार्क का सूर्य मन्दिर

बहुत विस्त्रत   मैदान मे फ़ैला हुआ हे .इस मंदिर को राजा नरसिंह देव  ने १३ वी शताब्दी में बनवाया था। इसका निर्माण कलिंग स्थापत्य कला के अनुसार किया गया है। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित हे। प्रभात की पहली किरण इस मंदिर में पहुंचती है। सूर्य के सात घोड़े एवं रथ के २४ पहिये इस मंदिर की स्थापत्य  कला में देखे जा सकते हे। यह स्थान अब विश्व की यूनेस्को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में दर्ज़ हे। 
कोणार्क के बाद हमने  पूरी के लिए अपनी यात्रा आरम्भ की। रास्ते  में हम कुछ समय के लिए चंद्रभागा बीच पर रुके। यह सम्पूर्ण यात्रा हमारी ओडिशा के समुद्री तट के सहारे चल रही थी। 
पूरी पहुँचाने पर शाम हो  गयी  थी । अतः पहला आकर्षण समुद्र तट पर सूर्यास्त का नज़ारा देखना  था। 

इसके बाद में हमने भगवान् जगन्नाथ के दर्शन करने गये। यह जगह हिन्दुओं के चार धाम में से एक हे ,
यहाँ पर कृष्णा बलराम एवं सुभद्रा की मूर्तियां हे ,यह मूर्तियां नीम की लकड़ी में उकेरी गयी हे ,

                                                 

जग्गनाथ मन्दिर पुरी 
वर्ष में एक बार इन मूर्तियों की रथ यात्रा निकली जाती हे। बहुत  बड़े रथ में विराजमान कर के इनको गुण्डिचा 
मंदिर में पहुँचाया जाता हे। इस यात्रा  के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु पूरे देश से पहुंचते हे। 
                                                                    
                                                            गुण्डिचा मन्दिर का प्रवेश द्वार 


भुवनेश्वर में ही उदयगिरी एवं खण्डगिरि   की  अति प्राचीन गुफाएं है। 
यकहन का नंदन कानन राष्ट्रीय उद्यान भी देखा '

                                                             
                                                                      उद्यान  में पक्षी 



मंगल जोड़ी पक्षी अभयारण्य 

यह छिलका लेक के 



चिलका लेक 
                                
                                           यह लेक माइग्रेटरी पक्षियों के लिये बहुत ही उपर्युक्त है। 

Friday, September 15, 2017

Migratory birds in Rajasthan

  1.                                                        पक्षी पलायन

प्रत्येक प्राणी को ईश्वर ने स्वयं को सुरक्षित रखने की क्षमता प्रदान की है। इसी कारण से यह सृष्टि चल रही हे। जीव मात्र कहीं भी खतरे की आशंका होते ही वहां से पलायन का प्रयास करते है। यह खतरा मौसम,या शत्रु का होता हे. इस पलायन की दौड़ में सबसे तेज बाजी मर लेते हे पक्षी। प्रकृति ने उन्हें पंख जो प्रदान किये हे। सम्पूर्ण विश्व में मौसम बदलता रहता हे।प्रतिकूल मौसम की मार से बचने के लिए मानव ने अपनी क्षमता के हिसाब से सुविधाओं की व्यवस्था की हे। ताकि उन्हें पलायन नहीं करना पड़े। लेकिन यह पक्षी सिर्फ अपने पंखों के सहारे सब तरह की मुसीबतों का सामना करते हे इसका इतना बढ़िया उदाहरण हम भारत के कुछ विशिष्ट स्थानों पर सर्दी के मौसम में दूर दराज़ से आये हुए पक्षियों को देख कर लगाया जा सकता हे। गुजरात के कच्छ जिले मेंभी ये पक्षी ठण्ड की मौसम में आते हे। फ्लेमिंगो कहलाने वाले ये पक्षी वहां कुछ महीने ठहराते हे और अपने अंडे दे कर उनके उड़ने तक रुकते हे अपने साथ अपने बच्चो को लेकर अपने देश चले जाते हे.इनके पंखों का रंग लाल होता हे इस वजह से इन्हे अग्नि पंख के नाम ;से भी जाना जाता हे। ;इसी तरहराजस्थान के उत्तर पश्चिमी इलाके में एक जगह हे खीचन। यह जोधपुर शहर से ६० किलोमीटर की दूरी पर हे। यहाँ पर प्रति वर्ष सितंबमाह से इन अतिथियों का आना आरम्भ हो जाता हे. यह पक्षी सुदूर साइबेरिया से आते हे।यह साइबेरियन क्रेन्स की प्रजाति हे। ये पक्षी हलके सलेटी रंग के यानि जिसे हम ग्रे रंग कहते है  के होते हे। प्रति वर्ष ८००० से १०००० तक पन्छी यहाँ आते हे। वहां पर तापमान बहुत कम हो जाता हे। बर्फ़ ज़माने लगती हे। तब ये पक्षी वहां से पलायन करते हे। पृथ्वी के उस हिस्से जहाँ कम सर्दी होती हे उस तरफ उड़ना आरम्भ करते हे।इंसानो के लिए सरहदे
बनायीगयी हे। लेकिन इन पक्षियों के लिए किसी भी वीसा की जरूरत नहीं हे। जहाँ सुविधा उपलब्ध हुयीवही बसेरा बना लेते हे खीचन में जो पक्षी आते हे उन्हें स्थानीय भाषा में कुरजां के नाम से जाना जाता हे        






          
                                      कुर्जा   का झुण्ड खीचन गांव में दाना चुगते हुए प्रातः नौ बजे
                                   

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यहाँ के निवासीवर्षा ऋतू के समाप्त होतेही  ;इन पक्षियों के आने की प्रतीक्षा करने लगते हे। यहाँ के लोक गीतों में भी इनपंछियों का वर्णन मिलता हे। ये पक्षी एक विशेष प्रकार की घास जो यहाँ पर होती हे उसे कहते हे कुछ छोटे जीव जंतु भी इनका भोजन होता हे। ये पक्षी यहाँ पर सदियों में अतिथि की तरह आते रहे हे। वैसे भी मारवाड़ की संस्कृति  अतिथि      देवो भव का प्रतीक हे. इनकी सुविधा को ध्यान में रखते हुए एक समिति का गठन किया हुआ हे। यह समिति इन पक्षियोंको निर्धारित समय पर दाना खिलाने की व्यवस्था कराती हे हमने जब इस स्थान को देखा तो एक विचत्र तरह का सामंजस्य यहाँ के निवासियों  इन पक्षियों में पाया। हमें बताया गया की प्रातः ९ से ११ बजे तक इनको दाना चुगने केस्थान पर देख सकते हे। उसके बाद यहाँ से उड़ कर ये कसबे के बाहर बने सरोवर पर पानी पीने के लिए पहुँच जायेंगे।इनकीसमयकी पाबन्दी देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ। यहाँ हमारी मुलाकात श्री सेवाराम माली से हुई   .ये इन पक्षियों की देखभाल में विशेष रूचि रखते है। इन्होने एक समिति गठन कर के इनके दाना पानी एवं सुरक्षा की देख रेख करते है। 

                                     
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सरोवर  पर पानी पीते हुए दिन केग्यारहबजे
    

Wednesday, April 1, 2015

Jaisalmer

Rajasthan state is full of history and forts,and arts.Each fort tells its own history through its sculpture
and the kind of  stone used to build it.Jaisalmer is at the western part of the state.
Whole city is surrounded by sand dunes.Stone used for buildings is yellow stone which glows in sunlight hence the city is also called golden city or in hindi swarn nagari.
As one drives towards Jaisalmer from Jodhpur which is 300 km apart,can see an abrupt change in the color of sand and stones.tourists from all over the world come to Jaisalmer to enjoy the scenic view of sand dunes.This small and quiet town which it was a few decades ago has now become the most saught after by tourists now.


The fort is made of yellow stone and is built on a hillock.It has a museum and palaces.As this yellow stones takes carving so well one can see windows and small balconies (jharokhas) beautifully carved.




The interesting fact is that people live inside the fort.One can see combination of local residents and tourists from all around the world moving in the fort.These local residents have converted their houses into small hotels.
The place is so much tourist friendly that one can see boys of 12 year old speaking English French and German languages.
For enjoying the camel rides in sand dunes one has to travel some 50 kilometers from the town.
This spot is known as Sum sand dunes.The nearby village is called Sum and so this spot is called Sum.One can find lots of camels with their owners to give tourist a ride which is an amazing experience

                                                                             
                                                                   Sand dunes at sum
.Camel can walk easily in sand .This Sum is just near the Indo Pak border.
In Sum  area so many hotels have come up during last two decades and few of these hotels have put some tents with all necessary amenities for tourists to spend a night in open desert .
I recommend Jaisalmer is worth visiting a place to have an unique experience of desert life.


One can reach Jaisalmer by  road or by train .
Rajasthan Tourism Developement Corporation known as RTDC runs a hotel named Moomal
with lodging boarding facility.


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Thursday, January 31, 2013

Suncity Jodhpur

                                                             सूर्यनगरी जोधपुर  
  
  राजस्थान का दूसरा बड़ा शहर और   मारवाड़   का सबसे बड़ा शहर हे जोधपुर |यह राजस्थान प्रान्त के पश्चिम की और बसा हुआ है। ।इस इलाके को मारवाड़ कहा जाता हे । । इस शहर को सूर्यनगरी के  नाम  से भी जाना जाता हे।साल में अधिकतम  दिनों तक यहाँ पर सूर्य  देवता के दर्शन  होते हे । आज से 550  साल पहले राव जोधाजी द्वारा यह शहर बसाया गया था और उनके नाम के कारण ही शहर का नाम जोधपुर है  |पहले किले का निर्माण हुआ जो की मेहरानगढ़ फोर्ट के नाम से प्रसिद्द हे ।  किले के   चा रों और शहर बसाया गया ।किंवदंती हे की जिस पहाड़ी पर किला बनवाया गया था  वंहा पर एक महात्मा तपस्या करते थे |उनका नाम चिडियानाथ जी था |राजा के कर्मचारियों ने उनका अनादर किया |एव क्रोधित हो कर महात्मा ने श्राप दिया था की इस शहर में हर तीसरे वर्ष अकाल पडेगा |जब तक राजा स्वयं वहां पहुंचे तब तक वे महात्मा वहां से जा चुके थे।उस स्थान पर एक मंदिर बना दिया गया था| और वह मंदिर  चिडियानाथ जी की गुफा के नाम से जाना जाता हे |और अक्सर यहाँ पर बारिश कम होती हे और यहाँ के निवासी इसे उस महात्मा  का श्राप समझ कर सांत्वना कर लेते हे ।








प्रत्येक शहर की कुछ विशेषता होती है ।यह विशेषता वहां के इतिहास एवं भोगोलिक परस्थितियों  से प्रभावित होती है ।जोधपुर शहर थार  मरुस्थल में स्थित होने के कारण  यहाँ का रहन सहन एवं खान पान
भी अलग तरह का है अत्यधिक तापमान के कारन एवं पानी की कमी की  वजह से  खाने के व्यंजन में घी एवं तेल अधिक मात्रा  में काम में लिए जाते है जिससे पका हुआ खाना अधिक तापमान पर भी ज्यादा समय तक खाने योग्य रहे  ।




                                                                  मेहरानगढ़ फोर्ट  
   इस शहर का एतिहासिक किला मेहेरान्गढ़ फोर्ट के नाम से प्रसिद्ध हे| । यह किला   ४०० फीटऊँची पहाड़ी पर  बना हुआ हे |यह किला शहर के उत्तर में हे |और किले के परकोटे में ही शहर बसा हुआ हे |परकोटा के बीच में शहर के अन्दर प्रवेश के लिए द्वार बने हुए हे |जेसे जालोरी गेट,सिवांची गेट ,चांदपोल गेट सोजती  गेट नागौरी गेट आदि|गिरदी गेट पर एक बहुत ही सुन्दर  इमारत हे जिसे घंटाघर के नाम से जाना जाता हे ।इसके अन्दर जो घडी लगी हुई हे वह एतिहासिक  हे ।इसी से लगता हुआ  जो बाजार हे उसे सरदार मार्केट कहते हे।

यह स्थान शहर का बहुत ही व्यस्ततम  हिस्सा   हे ।यहाँ पर शहर के आस पास के गांवों  की जनता अपनी आवश्यकता का सामान खरीदने आती हे ।



पर्यटकों के लिए भी यह बहुत ही आकर्षक  स्थान हे ।विशेष कर  विदेशी पर्यटकों को यह सरदार मार्केट बहुत ही





आकर्षक  लगता हे ।सरदार मार्केट के अन्दर की तरफ जा कर बायीं तरफ के रास्ते से शहर के भीतरी हिस्सों का नजारा देख सकते हे ।
इसी बाजार में प्रतिदिन के उपयोग की हर तरह की खरीदारी की जा सकती हे।


दर्शनीय स्थलों में  मेहेरान्गढ़  फोर्ट  उम्मीद  भवन palace,जसवंत थड़ा,एव मंडोर उद्यान हे।पुराने समय में कई स्थानों पर कुए थे जो पीने के पानी के मुख्या स्त्रोर थे कुछ तालाब जो भी बारिश का पानी एकत्रित कर के
वर्ष भर पानी उपलब्ध करते थे ।लेकिन पिछले तीस वर्षों से इंदिरा गाँधी नाहर के आ जाने से शहर में पानी की समस्या  से राहत  मिली है।




                                                 
                                                                      उम्मेद भवन 
|उम्मेद  भवन राजा उम्मेद   सिंह द्वारा 1929 में बनवाया गया था। यह भवन छितर के पत्थर से बनवाया गया हे||उस समय जो अकाल पड़ा तब लोगों को काम देने के उद्धेश्य से इसका निर्माण हुआ |इस भवन के बनाने में 14 वर्ष लगे ।यह एक ऊंची पहाड़ी प र बना हुआ । हे ।यह भवन  हिन्दू  एवं गोथिक स्थापत्य कला के मिश्रण का उत्कृष्ट उदहारण हे ।इस भवन में 350 से भी अधिक कमरे हे ।कुछ भाग को होटल बना दिया हे ।शेष भाग राज परिवार का निवास स्थान  हे ।
इसकी स्थापत्य कला बहुत  ही सुन्दर हे |
जसवंत थड़ा में  राजघराने के दिवंगत सदस्यों के मकबरे बने हुए हे |सफ़ेद संगमरमर के बने हुए इस इमारत की कारीगरी देखते ही बनती हे ।


यहाँ का बंधेज का काम बहुत ही प्रसिद्ध हे |शहर के कुछ इलाकों में रंग बिरंगे दुपट्टे एव साड़िया सूखती हुई दिखाई देंगी |औरतें कपडे पर बंधेज का काम करते हुए भी दिखाई देती हे | एक छोटा सा ओजार अपनी उंगली में पहनकर (जो   की   कपडे कोउठाने के काम   आता हे । )इसे नाखालिया कहते हे यह एक थिम्बल  या अन्गुश्तानी  की तरह होता हे । कारीगर कपडे को धागे से डिजाइन  के ऊपर बांधते हे ।उसके बाद उसे रंगते हे ।जहाँ पर कपड़ा बंधा हुआ   होता हे वहां रंग नहीं लगता हे ।हर तरह के वस्त्रों पर यह काम किया जाता हे जेसे की रेशम,सूती,शिफोन आदि ।जितना बारीक डिजाई न उतना ही अधिक समय एवं मेहनत लगती  हे एवं उतना ही सुन्दर और महंगा होता हे ।
जोधपुर का दरी उद्योग भी बहुत प्रसिद्ध हे ।यहाँ से 20 किलोमीटर की दूरी पर पाली हाइवे पर कांकाणी गाँव हे


जहां बहुत ही सुंदर दरिया बनाई जाती हे ।यह दरिया विश्व भर में निर्यात की जाती हे ।
यहाँ के लोग खाने के बहुत ही शौक़ीन होते हे |हर गली के नुक्कड़ पर मिठाई एव नमकीन की दूकान इसका उदारहण हे | वर्ष भर यहाँ सुबह गरम जलेबी  मिठाई की दूकान पर नाश्ते के लिए मिलती  हे। यहाँ की प्रसिद्ध  मिठाई  मावा कचोरी हे |चोंकिये मत यह मीठी कचोरी हे जिसमे सिका हुआ मावा भर कर बनाते हे |यहाँ का प्रसिद्ध नमकीन मिर्ची  बड़ा हे |
 इस शहर की भाषा जो की मारवाड़ी हे बहुत ही मीठी एव अदब वाली हे |यहाँ के निवासी बहुत ही गर्व से कहते हे की मीठा खाते हे और मीठा बोलते हे ।शायद यह कह कर वे अपने अधिक मिठाई के सेवन की सार्थकता सिद्ध करने का प्रयास करते हे ।

थार मरुस्थल में बसे होने की वजह से इस शहर पर प्रकृति की मेहरबानी कम हे |और  पानी की कमी होने से न तो यहाँ पर कोई industry हे और न ही अधिक खेती हो सकती हे

                                                                  पत्थर की खान          
|लेकिन फिर भी लगता हे कुदरत मेहरबान हो गयी |इस शहर के आस पास पत्थर की बहुत ही खाने हे |यह पत्थर गुलाबी रंग का होता हे इसे छितर का पत्थर कहा जाता हे | और बहुत ही  मजबूत होता हे  |नक्काशी का काम इस पत्थर पर बहुत ही बारीकी  से किया जाता हे |और देश के दूर दराज के इलाकों में इस  पत्थर की मांग हे |इन खानों में स्थानीय निवासियों को रोजगार मिल जाता हे  ।
                 
                                                         छितर के पत्थर से बनी इमारत 
  `
पूरे मारवाड़ में रेगिस्तान फेला हुआ  हे ।प्रकृति ने रंगों के नाम पर रेत  का रंग ही भरा हे यहाँ पर ।लेकिन यहाँ के निवासियों ने रंगों की इस कमी को अपने वेशभूषा से पूरा किया हे ।यहाँ की स्त्रियों की पोशाक लहंगा एवं ओढ़नी हे जो की विभिन्न रंगों के होते हे ।हर मोसम के रंग इन पोशाको में दिखाते हे ।
सावन के महीने में लहरिया खास कर के हरे रंग का बहुत ही लोकप्रिय हे ।दिवाली के त्यौहार पर लाल रंग की बंधेज की चुन्दडी एवं फागुन होली के अवसर पर फागणिया  जो की एक  विशेष प्रकार की बंधेज  की डिजाई न हलके रंगों की होती हे ।पुरुष भी विभिन्न रंग  के साफे अवसर  विशेष के अनुसार पहनते हे ।
यहाँ पर एक कहावत है की सात वार और नौ त्यौहार ।अर्थात सप्ताह के सात दिन में नौ त्यौहार कैसे मनाये जाय लेकिन यहाँ के निवासी हर त्यौहार को उत्साह से मनाते हें ।
होली दिवाली दशहरा रक्षाबंधन एवं गणगौर यहाँ के प्रमुख त्यौहार हे ।गणगौर का त्यौहार राजस्थान प्रान्त में ही मुख्य रूप से मनाया जाता हे ।
होली के बाद में आरंभ हो कर पंद्रह दिन तक चलने वाला महिलाओं का  यह बहुत ही प्रमुख त्यौहार हे ।
युवतियां सज धज कर जलाशय का पवित्र जल चमकते हुए लोटों में भर कर सामूहिक रूप से गीत गाती हुई
दिखाई देती हे ।इसी जल से मिटटी के सकोरे  में मिटटी  डाल  कर गेहूं की बाले उगाये जाती हे पूजा के लिए।
जी हाँ यह गणगौर पूजा की तैयारी हे।
यहाँ का रेलवे स्टेशन बहुत ही सुन्दर बना हुआ हे|यह ईमारत भी इसी पत्थर से बनी हुई हे ।इस शहर के महत्वपूर्ण भवन अधिकांश  यहाँ के छितर के पत्थर से बनाये  गए हे ।
यहाँ पर सफ़ेद धातु एवं लकड़ी  से  मूर्तियां  बनाई जाती हे ।यहाँ के लोग हर त्यौहार को बहुत ही धूम धाम से मनाते हें यदि देखा जाए तो त्यौहार भी यहाँ पर बहुत हें ।
एक कहावत हे कि


यहाँ के निवासी देश में ही नहीं विदेश में भी जा कर बसे हे ।फिर भी अवसर मिलते ही जोधपुर आने के प्रयास में रहते हे ।विशेष कर के अपने बच्चों की शादी  समारोह का  जोधपुर शहर में करना पसंद करते हे ।इसी कारण  यह यह कहना अतिशयोक्यी नहीं होगी कि शादियों का आयोजन यहाँ की बहुत बड़ा उद्योग हे ।शादी के स्थल,टेंट हाउस (जहाँ से सजावट और उपयोग का सामान किराये प् लिया जाता हे)कटेरेर्स ,बंड बाजे  वाले
इस शहर में बहुतायत में उपलब्ध हे ।
पकिस्तान की सीमा से पास होने के कारण थार  एक्सप्रेस यहीं से चलती हे।यह रेल सेवा भारत और पकिस्तान के अछे सम्बन्ध बनाने के बाद आरम्भ की गयी हे ।
    पहले यहाँ पर तकनीकी शिक्षा के लिए एकमात्र  इंजीनियरिंग कॉलेज था लेकिन उसके बाद में कई शैक्षणिक संस्थान आरंभ हो गए .राष्ट्रीय स्तर के संस्थान जेसे की आई आई टी ,A I M S आदि
राष्ट्रीय स्तर की NLU भी यहाँ पर हे
सीमावर्ती क्षेत्र  के कारण यह शहर थल सेना एवं वायु सेना का बेस हे यहाँ का हवाई अड्डा सैनिक हवाई अड्डा हे

यहाँ  पहुँचने के लिए देश के सभी बड़े शहरों से सीधी रेल    है ।दिल्ली एवं मुंबई से जोधपुर विमान सेवा से भी जुड़ा हुआ है ।







Monday, July 16, 2012

Sedona The City of Red Rrocks

Red Rocks of different shapes
                                                     This colorful universe is the creation of God.As we travel from one place to another the geography changes and with that colors also changes.The change is so gradual that it does not strike to our mind so much.But if we notice a sudden change that makes us  think  as to what must have  happened ?
I experienced it when I visited Sedona  a small city over one hundred and twenty miles north of  Phoenix Arizona.



While driving on highway 179 all of a sudden I could see red rocks standindg side by side of offwhite rocks,the color of the sand changes too.By the time one reaches to the intersection of 179 and 89A it is all red.


The reason I could guess was that  God must have lost his colorbox while painting and took another box with red in plenty.The scientific reason for this change is that red rocks are rich in iron .This  must have been because of some geological changes.
This is a popular tourist spot particularly during summer as the temp is always cooler by 25F than in Phoenix..
One can see rocks surrounding are up to 2000ft height.These rocks are of different shapes  These rocks give an orange red glow at    sunrise and sunset . As the city itself is at a certain height so there is no down town it is called as the main town or Uptown.
      This place has been a popular spot for hollywood movie makers because of it's unique natural beauty.
This is the venue for film festivals too.A one week international film festival screens all kinds of films.

Down town(uptown Sedona)
                                                The name Sedona was given after the name of a lady Sedona Schenbly who was the wife of then first postmaster posted in this city



Sedona Schenbly

The city is ready to welcome tourist by providing all sorts of facilities viz good restaurants ,shopping centers,art village etc.In an art village named "Tylaquepaque" one can see shops selling all kinds of art from sculpture,and glass work,painting and jewellery.This building is very beautiful with corridors with arches  and vine covered walls .Meaning of word Tlaquepaque is best of everything Nahuati Native Indian Language and it really has best of evrythingThis place is the significance  of what Sedona is.It was named after the colourfull  Mexican city.                                                                    
                                                                     Tlaquepaque
In the city at the souvenier shop clothes are available dyed from red sand as the sand is so rich in colour..
At the shop one can watch a video of dyeing of fabric using sand .
An efficient tour service to takes you up to a height of 2000 ft through rocks on a gravel   winding road  is an exciting experience.This tour is in an open jeep tour with an expert driver cum guide .During this trip you get to know the flora and fauna of the place.
Pink Jeep Tour
                                                                 

Wednesday, September 28, 2011

Bharat Ka Padosi Desh

                                                          हिमालय की गोद में बसा नेपाल
नेपाल   भारत का पडोसी देश  हे और  उत्तर में  हिमालय की गोद में  बसा हुआ हे।इसकी सीमायें  पूर्व ,पश्चिम एवं दक्षिण तीनो ओर से भारत से मिली हुई है।हमारी यात्रा दिल्ली से गोरखपुर तक रेल से थी ।हमें नेपाले की दक्षिणी सीमा से प्रवेश करना था ।गोरखपुर से 100 कम का सफ़र जीप द्वारा तय करके हम सोनोली बोर्डर पहुंचे ।वहां पर अंतर्राष्ट्रीय सीमा चौकी है ।यहाँ से हमने नेपाल में प्रवेश किया ।हमें भरतपुर पहुँचाना था ।अत: हम बुट्कल  होते हुए बस द्वारा भरतपुर पहुंचे ।बहुत ही घुमावदार रास्ता था ।
भरतपुर से ही पर्वतराज हिमालय के दर्शन हो गए थे ।यहाँ से काठमांडू तक का सफ़र बहुत ही रोमांचक था
नारायणी नदी के किनारे से पतली सड़क जिसके एक और पहाड़ हे ।एसा लगा की यात्रा बस की सीट पर नहीं बल्कि प्रकृति की गोद में बैठ कर  कर रहे हैं ।
   |नेपाल का  क्षेत्रफल 147000 km  हे |     बहुत ही सुंदर देश है। यह विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र है । 
|यहाँ के निवासी बहुत ही सरल स्वाभाव के होते हे |यहाँ के  लोग मेहमान नवाजी में भी निपुण होते हे |
इस देश की राजधानी काठमांडू हे |पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ रेल मार्ग की सुविधा उपलब्ध नहीं हे |
सड़क  या हवाई मार्ग से ही देश के एक हिस्से से दुसरे हिस्से में पहुच सकते हे |छोटे छोटे   हवाईजहाज नेपाल के काठमांडू हवाई अड्डे से उड़ान भरते हे पूरे देश में ४० से भी अधिक एअरपोर्ट हे |
पर्वता रोहन में रूचि रखने वाले पर्यटक दुनिया के हर कोने से यहाँ आते हे Mt एवेरेस्ट  पर चढ़ने के लिए |
|इसी कारण पर्वतारोही के ठहराने  के लिए पहाड़ों के मध्य उत्तम कोटि के होटल एवं  अतिथिगृह उपलब्ध है ।
यहाँ की आर्थिक व्यवस्था में पर्यटन की भूमिका महत्वपूर्ण है ।काठमांडू के  थामेल में  सम्पूर्ण विश्व के पर्यटक  दिखाई देते है ।
|पर्वतीय इलाका होने की वजह से यहाँ का रहन सहन अलग हे |
समतल भूमि नहीं होने से सीढ़ीनुमा खेत बनाये हुए हे |नारायणी नदी यहाँकी   प्रमुख नदी हे |

                                                                   लचका  पुल
|इस नदी को पार करने के लिए जो पुल बनाये गए हे वो यहाँ की भाषा में लचका पुल कहा जाते हे ये पुल लोहे के तारो से बने होते हे |इन पर चलते समय इस पुल पर कम्पन होती हे |
स्वयम्भू एक बौध मठ हे| यह एक पहाड़ी पर हे | यहाँ पर भगवान्  बुध की सोने की मूर्ती हे।




                                                                बुध की स्वर्णिम प्रतिमा
भगवान् बुध का जनम स्थान लुम्बिनी भी नेपाल में ही हे |जो कपिलवस्तु के नाम से जाना जाता हे सीता का  जनम स्थान भी नेपाल में ही हे |जिसे कभी मिथिला के नाम से जाना जाता था |
यहाँ से जब मौसम साफ़ होता हे तो mt एवेरस्ट देख सकते हे   हे उनमे उत्तर पूर्व स्थापत्य कला की झलक मिलती  हे |उसका नमूना इस चित्र में दिखाई देता हे |यह काठमांडू  शहर के बीच में स्थित हे |इसे दरबार
square के नाम से जाना जाता हे |
                                       
                                                                दरबार स्क्वायर
यह काठमांडू शहर के मध्य में स्थित हे।पशुपतिनाथ  का मंदिर भी काठमांडू में ही है ।
भारत से नेपाल जाने के लिए उत्तरप्रदेश या बिहार की सीमा से जाना पड़ता हे |
गोरखपुर से १०० कम की दूरी पर सोनौली बोर्डर से या बिहार के रक्सौल बोर्डर से नेपाल जा सकते हे |
हवाई यात्रा के लिए delhi से काठमांडू के लिए विमान सेवा उपलब्ध हे |