Saturday, June 16, 2018

A trip to Orissa

हमरा देश तीन तरफ़  से समुद्र से घिरा हुआ हे। समुद्र के किनारे रहने वाले निवासियों के जीवन के अनुभव भिन्न तरह के होते हे. जो लोग समुद्र से दूर रहते हे उनकी कल्पना में समुद्र के बारे में तरह तरह के दृश्य उभरते>है।क्योंकि मेरा जन्म और बचपन मे थार के रेगिस्तान के शहर जोधपुर में हुआ जहां पर इंदिरा नहर के आने के पहले पानी की बहुत कमी थी अतः में सदा से ही बाग़ बगीचों ,झील,तालाबों में ही आनंद अनुभव कराती हूँ. उड़ीसा पहुँचते ही मन प्रसन्न हो गया। उपजाऊ भूमि,एवं जल के संसाधनों की बहुतायत से हर तरफ हरा भरा नजर .>हमारा पहला पड़ाव उड़ीसा में भुवनेश्वर था
यह उड़ीसा की राजधानी है। हवाई अड्डे पर उतरते ही लगा कि यह शहर बहुत ही आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण होगा। शहर साफ सुथरा शहर। निवासी मृदुभाषी एवं सरल स्वाभाव के हे.. भुवनेश्वर में हमने यहाँ के म्यूजियम को देखने का प्लान बनाया था। उसके बाद में धौली का रात्रि का ध्वनि एवं प्रकाश का शो. देखना था

                                                                                                          धौळी  का  स्मारक 

                                                             
 धौली यहाँ की दया नदी के पास बना हुआ बुद्ध धर्म का स्मारक है  दया नदी का ऐतिहासिक मह्त्व है । इसी नदी के पास सम्राट अशोक ने कलिंग का युद्ध लड़ा था परिणाम वश यह नदी रक्त रंजित हो गयी थी।  एवं उसके बाद सम्राटअशोक  ने बौद्ध धर्म अपना लिया था
यही युद्ध कलिंगा के युद्ध के नाम से जाना जाता हे। यह युद्ध बहुत ही भयंकर था।कहा जाता हे की इस युद्ध के कारन दया नदी  का पानी रक्त रंजीत हो गया था। रात्रि का शो बहुत ही आकर्षक था। ऐसा महसूस हुआ कि मौर्या वंश के काल में बैठे हुए सब देख रहे भुवनेश्वर के बाद हमने कोणार्क मंदिर देखने का निश्चित किया। लेकिन उसके पहले हमने भुवनेश्वर के पास ही कुछ मंदिरो के दर्शन किये। वैसे तो इस जगह के चारोऔर अनगिनत मंदिर हे। सभी अपने आप में भव्य एवं ऐतिहासिक;हे। सभी को देखना संभव नहीं था समयाभाव के कारण। अतः हम लिंगराज मंदिर एवं राजा रानी मंदिर के दर्शन किये। कोणार्क मंदिर सूर्यदेवता का मंदिर हे..य़ह भुवनेश्वर से सत्तर   किलोमीटर दूर हे .
                                                                        कोणार्क 
               

                                                                 कोनार्क का सूर्य मन्दिर

बहुत विस्त्रत   मैदान मे फ़ैला हुआ हे .इस मंदिर को राजा नरसिंह देव  ने १३ वी शताब्दी में बनवाया था। इसका निर्माण कलिंग स्थापत्य कला के अनुसार किया गया है। यह मंदिर सूर्य देवता को समर्पित हे। प्रभात की पहली किरण इस मंदिर में पहुंचती है। सूर्य के सात घोड़े एवं रथ के २४ पहिये इस मंदिर की स्थापत्य  कला में देखे जा सकते हे। यह स्थान अब विश्व की यूनेस्को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में दर्ज़ हे। 
कोणार्क के बाद हमने  पूरी के लिए अपनी यात्रा आरम्भ की। रास्ते  में हम कुछ समय के लिए चंद्रभागा बीच पर रुके। यह सम्पूर्ण यात्रा हमारी ओडिशा के समुद्री तट के सहारे चल रही थी। 
पूरी पहुँचाने पर शाम हो  गयी  थी । अतः पहला आकर्षण समुद्र तट पर सूर्यास्त का नज़ारा देखना  था। 

इसके बाद में हमने भगवान् जगन्नाथ के दर्शन करने गये। यह जगह हिन्दुओं के चार धाम में से एक हे ,
यहाँ पर कृष्णा बलराम एवं सुभद्रा की मूर्तियां हे ,यह मूर्तियां नीम की लकड़ी में उकेरी गयी हे ,

                                                 

जग्गनाथ मन्दिर पुरी 
वर्ष में एक बार इन मूर्तियों की रथ यात्रा निकली जाती हे। बहुत  बड़े रथ में विराजमान कर के इनको गुण्डिचा 
मंदिर में पहुँचाया जाता हे। इस यात्रा  के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु पूरे देश से पहुंचते हे। 
                                                                    
                                                            गुण्डिचा मन्दिर का प्रवेश द्वार 


भुवनेश्वर में ही उदयगिरी एवं खण्डगिरि   की  अति प्राचीन गुफाएं है। 
यकहन का नंदन कानन राष्ट्रीय उद्यान भी देखा '

                                                             
                                                                      उद्यान  में पक्षी 



मंगल जोड़ी पक्षी अभयारण्य 

यह छिलका लेक के 



चिलका लेक 
                                
                                           यह लेक माइग्रेटरी पक्षियों के लिये बहुत ही उपर्युक्त है। 

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